व्यापारियों व निजी कंपनियों के गेहूं खरीदने पर लगी पाबंदी हटी।

 https://www.youtube.com/watch?v=rmTsaamI_V4


 गेहूं मंडियों में आना शुरू हो गया और पिछले दो-तीन वर्षों से सरकारी संस्थाएं लक्ष्य के अनुसार गेहूं नहीं खरीद पा रही थी जिसका मुख्य कारण था निजी कंपनियों और व्यापारी गेहूं को तेज कीमत पर खरीद रहे थे। परंतु स्टॉक में गेहूं ना होने के कारण प्रशासन पर भी दबाव था लक्ष्य पूर्ण करने का और इसी को देखते हुए प्रशासन ने तानाशाही फरमान जारी कर दिए और इन्हीं फरमानों का विरोध शुरू हो गया। दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी कंपनियां भी जुगाड़ पर लग गई।

जिसमें वह फर्म भी है जो साहब व सरकार की चाहती है परंतु क्योंकि यह फैसला प्रथम दृष्टि किसानों के पक्ष का है तो हम इस पर नकारात्मक भी नहीं कह सकते। बस नीयत में ईमानदारी हो क्योंकि यह भी बयान आए थे कि व्यापारी सीधा किसान से फसल ना खरीदे इससे तो सरकार के प्रति चुनाव के समय गलत मैसेज जाना स्वाभाविक था चलिए देर आए दुरुस्त आए। बस यह आदेश जुमला ना हो यही ईश्वर से प्रार्थना है।

         


शासन ने मंडी सचिवों के आदेश फ्लोर मिल मालिकों के साथ मीटिंग के बाद रद्द किए। प्रमुख सचिव खाद्य एवं रसद आलोक कुमार ने आदेश रद्द किए और किसानों और व्यापारियों को राहत दी कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह ने आदेश जारी किए। मिलों की भंडारण सीमा घटकर 500 मेट्रिक टन कर दी गई थी जो पहले 3000 मेट्रिक टन थी। भंडारण क्षमता आदेश से प्रदेश की गेहूं मिलों पर संकट आ गया था। इसी को देखते हुए मंडी सचिवों के तानाशाही आदेश को रद्द कराया गया। यूपी रोलर फ्लोर मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार जैन ने प्रमुख सचिव से मीटिंग कर तानाशाही आदेश रद्द करवाया। सरकार का 80 लाख मैट्रिक टन खरीद का लक्ष्य है। क्रय केंद्रों की संख्या 5000 से 6000 कर दी गई। पिछले तीन सीजन से सरकारी खरीद का लक्ष्य काफी कम रह रहा था।

           आलोक कुमार ने राज्य कृषि उत्पादक मंडी समिति के निर्देशक से कहा कि प्रदेश के 2.63 करोड़ किसानों की उपज का बेहतर मूल्य दिलाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रोसोसिंग इंडस्ट्री को गेहूं खरीद से रोकना किसानों के मूल्य पर असर डालेगा। इसी कारण से निजी खरीद की रोक के आदेश को निरस्त कर दिया गया और अब निजी कंपनियों के आने से किसानों को सीधा लाभ होने की आस है। सरकार को बोनस की घोषणा कर अपना लक्ष्य पूरा करना चाहिए यह शब्द किसान नेता चंदन सिद्धू ने कहे और सरकार व प्रशासन के फैसले का स्वागत व धन्यवाद किया।

           


 कुछ सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के बर्ताव व लालच के कारण किसान सरकारी क्रय केंद्रों से दूर होते जा रहे हैं किसानों को जिस तरह खरीद के मानकों के नाम पर शोषित व प्रताड़ित किया जाता है इसी कारण से किसान खरीद केंद्रों से दूर होते जा रहे हैं प्रशासन हर बार उचित व्यवस्थाओं का ऐलान करता है परंतु जमीनी हकीकत बिल्कुल उल्ट होती है यहां तक ईमानदार कर्मचारी क्रय केंद्र की ड्यूटी से बचने का प्रयास करता रहता है कोई तो कारण होगा इस बचाव का। मंडी सचिवों को लक्ष्य पूरा करने के लिए जब ऊपर से दबाव पड़ा। तो जिस तरह जिले के प्रशासन ने तानाशाही फरमान जारी किए उस से एक झलक मिलती है कि इन प्रशासनिक अधिकारीयों व कर्मचारियों का व्यवहार आम जनमानस से कैसा होगा यही बात आंदोलन करने वाले किसान ऊपर के मंत्री व उच्च अधिकारियों के पास पहुंचाना चाहते हैं अगर कोई समझे तो।

                     जय हिंद।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Featured post

मोदी जी इस बार शायद मुश्किल है। (एक रिपोर्ट)