भारत और ऑस्ट्रेलिया का टी -20 मैच तीन कैच छूटे दो कैच तो बिल्कुल आसान फिर भारत हारा 200 के ऊपर का स्कोर भी भारत डिफेंड नहीं कर सका।
खेल है जीत हार चलती है। गलतियाँ होती हैं। परन्तु एशिया कप में हुए पकिस्तान के
साथ वाले मैच की याद आई। जिसमें एक कैच छूटा था और खालिस्तानी का टैग बढ़ना शुरु हो
गया था। इस मैच और एशिया कप के मैच में अंतर था कि ये कैच उस समय गिरा जब खेल बन
रहा था। एशिया कप वाले मैच में खेल क्लाईमैक्स पर था। दिलों की धड़कने बढ़ी हुई थी फैन खुद मैदान में
नहीं खेल सकते थे परन्तु जीत के लिए हर प्रयास हो रहा था तभी कैच छूटा और बर्दास्त
नहीं हुआ मन में पनप रहे बीज कि 'सिक्ख खालिस्तानी' है। या समर्थक है। उसका असर हुआ और भावनाओं ,में बहकर उस खिलाड़ी को टविटर पर खालिस्तानी या
खालिस्तानी समर्थक टैग मिलने लगा। वैसे ये बीज एकदम से नहीं मिला। इस बीज को कुछ
खाद वैगरह किसान आंदोलन के समय भी मिली बीज पुराना है। आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहा है।
साथ में योगी आदित्यनाथ जी जैसे नेता सिक्खों के गुरुओं के आगे सिर भी झुकातें
हैं। उनका मानना है कि सिक्ख गुरुओं के द्वारा किये गए प्रयासों से ही हिन्दू धर्म
का अस्तित्त्व है। परन्तु कुछ लोग जो सही और गलत को समझ नहीं पाते उनके मनों में
किसान आंदोलन के समय किया गया विरोध खालिस्तानी का टैग देता है।
हार स्वीकार नहीं थी वो भी पाकिस्तान से, मैच प्रेशर में कैच सिक्ख खिलाड़ी से छूटा, मन के कोने में सिक्खों के प्रति घूम रहा विचार जुबान पर आया वैसे अभी 'जोगी' रूप फिल्म देखने को मिली जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या की सजा उन निर्दोष लोगों को दी जाती है। जिनका न तो उस हत्या से कोई सरोकार था न खालिस्तान से फिल्म के अनुसार शुरु में किये गए मानव नरसंहार में कुछ लोगों को तो ये भी नहीं पता था कि उन्हें क्यूँ मारा जा रहा है। ये सब मन में भरे उस बीज की देन था, जिसका छोटा सा उदहारण एशिया कप के मैच में देखने को मिला। राजनीति करने वाले लोग उस बीज को खाद वैगरह देते रहते हैं।
भारत की एजेंसियों ने बताया की पकिस्तान के किसी नागरिक ने शुरुआत की
थी परन्तु समझदार ज्ञान बांटने वालों ने उस चिंगारी को हवा तो दी। और बाद में कुछ
पुराने प्लेयरों ने हिम्मत करके इस आग को बुझाया। अब देखिये की भारत और पाकिस्तान
की मैच की जंग कैसी होगी। पाकिस्तान क्रिकेट के बड़े अधिकारी रामीज राजा एक पत्रकार
से कह रहे हैं कि तुम भारतीय हो। मनों के अंदर इकठ्ठा हुआ रोष अक्सर मौकों पर
निकलता रहता है। हम सब लोग एक देश के नागरिक हैं। परन्तु एक दूसरे पर पूर्ण
विश्वास नहीं है। जबकि अगर तरक्की चाहिए एक जुट होना पड़ेगा, जरूरी है। सरकार को अगर आप नहीं कर सकते तो कुछ ऐसी योजनाएं लानी पड़ेगी जो जोड़ने
का काम करें और उन पर वर्क करेंगे NGO जो समाज सुधार की शपथ लेते हैं।
हमारे सविंधान में हर व्यक्ति को अपने विचार रखने का अधिकार है।
परन्तु ये अधिकार अगर देश के समाज को बांटने का काम करेगा तो उसकी निगरानी होनी
चाहिए। उस हर नेता को सजा का प्रावधान होना चाहिए जो समाज को बांटने का काम करे।
उस विषय पर कार्य करने वाले सविधान के रक्षक अधिकारियों को पूर्ण अधिकार हो वह हर
उस व्यक्ति या नेता पर कारवाही कर सके जो नुक्सान दायक बातें कह कर समाज का
नुक्सान करता है। कुछ नीतियों में बदलाव होना चाहिए।
लेखक की कलम से
0 टिप्पणियाँ