ये बातें सुनकर या पढ़कर सुकून मिलता है
। उन लोगों को तो ज़रूर मिलेगा जिन्होंने इस लत के कारण नुक्सान
उठाया है ।
चलिए पहले सरकार के प्रयास की बात करते है
।
नशा मुक्त भारत अभियान के तहत जिले के मुख्य अधिकारी को केंद्र की सरकार के माध्यम से वार्षिक राशि मिलती है। अधिकारी को केंद्र के मंत्रालय के द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार कमेटी बनाकर राशि को लोगों को जागृत करने पर खर्च करना है ताकि नशे के कारणआने वाली तबाही से समाज को बचाया जाये।
अब सरकार का दूसरा मंत्रालय कहाँ कहाँ शराब का ठेका खोलना है। सरकार
की शराब नीति को लागू कर कैसे खजाना भरना है इस पर काम कर रहा है और समझिए शराब
नीति का पालन सही से हो रहा है या नहीं इस बात को भी वही अधिकारी देखे गा जो नशा
मुक्त भारत अभियान को देख रहा था। मतलब एक मीटिंग में वह निर्देश दे रहा है कि
सैमीनार लगाये कि नशा बुराई है और दूसरी मीटिंग में फैसला होगा कि कितने नए ठेके
खुले हैं। "है न सोचने की बात"
अब बात करते हैं ।
ऐसा क्यूँ होता है। इसके पीछे का कारण
है। शराब और तम्बाकू से सरकार को अपना खजाना भरने के लिए टैक्स मिलता है जो बाद
में देश के विकास पर लगना है और नशे के कारण होने वाली मौतों पर मानवाधिकार आयोग
ऊँगली उठाएगा। इसलिए नशा मुक्ति अभियान भी जरूरी है।
अब नशे के कारण क्या होता है
। इस पर बात करते हैं ।
नशा व्यक्ति को ग़ुलाम बना लेता है। उस गुलामी में व्यक्ति अपराध करता है। जीवन उजाड़ लेता है। अपने बच्चों का भविष्य संवारने की जगह पैसे को नशे की पूर्ति में लगा देता है। नशे के सेवन से लीवर डैमेज, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियाँ होती है परन्तु गुलामी नहीं छूटती जीवन छूट जाता है,
नशा मुक्त भारत अभियान के तहत पत्रिका में एक लेख नशा की समस्या को
लेकर होगा । आप लोग अपनी समस्या पर मैसेज कर सकते
हैं ।
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